रविवार, 23 अक्तूबर 2011

कर लो जब्त : यह रहा काला-धन

                                                   कर लो जब्त : यह रहा काला-धन
 आदरणीय अन्ना अंकल,
हमारी गली का राम औतार अपना काला धन जब्त कराने के लिए अनशन कर रहा है,लेकिन सरकार है कि इसे काला धन ही नहीं मान रही.
राम औतार ने परसों गली के चौक पर स्टेज़ बनाई,लाऊड-स्पीकर लगाया और इस पर अपने अनशन की घोषणा  करते हुए सरकार के खिलाफ भाषण  शुरू कर दिया. तमाशा  देखने वालों को अपना समर्थक समझकर जोश  में भर गए और बोले कि  जब तक उनका काला-धन जब्त नहीं किया जायेगा, वे प्राण त्याग देंगे लेकिन हटेंगे नहीं.
       अंकल  जी , मरे से मरे भारतीय के घर भी 5-7 तोले सोना और आधा किलो चांदी दबी ही रहती है.लोग डरे कि खुद भी मरेगा और हमें भी मरवायेगा. यह यहां से हटे तो उनका भी पिण्ड छूटे. बस किसी ने खबरिया चैनल को फोन कर दिया. चैनल वालों के पास उस दिन कोई धमाकेदार न्यूज़ नहीं थी, सो बेचारों ने छतरी की तरह राम औतार पर कैमरा तान दिया.एंकर चिल्लाने लगा,“ धन्य है यह देशभक्त जिसका विवेक जागा और अपना काला धन सौंपने को तैयार है. सरकार कब तक छुप कर तमाशा  देखेगी?  उसे आना ही पडेगा, इसी ज़गह,  इसी चौक में....“
          और हार कर पुलिस-कप्तान को आना पडा. उन्हे लेकर राम औतार अपने घर की और चले. पीछे उनके समर्थकों की भीड. राम औतार के घर के आंगन में उनकी पत्नी खडी थी,मोटी और काले रंग की. राम औतार ने उसकी तरफ इशारा करते हुए हुए कहा,“ यही है मेरा काला धन.जब्त कर लो इसे.“
   कप्तान साहब का जी तो किया होगा कि इसे अभी एक झन्नाटेदार थप्पड दूं,लेकिन कैमरे के सामने यही कहा,“यह आपकी पत्नी है,बडे भाई. यह काली तो है लेकिन...“
     राम औतार उन्हे समझाने लगे,“ देखिए,शास्त्रों मे धन को लक्ष्मी कहा गया है,यह काली है तो काला धन हुआ कि नहीं? इसका नाम तो लक्ष्मी है ही, इसके बाप से मैंने मोटा धन दहेज़ के रूप में यानि दो नंबर में लिया था. अब बताओ,यह किस हिसाब से काला-धन नहीं है?“
  कप्तान साहब ने हाथ जोडे, “भाई साहब, काली औरतों को जब्त करने का कोई कानून नहीं है, ना ही कोई बिल.“
राम औतार अडे हुए हैं कि बिल नहीं है तो बना लो.
अंकल आप जूस पिला दें तो राम औतार अनशन तोड सकते हैं. ज़रा जल्दी आना क्योंकि टी वी वाले बहुत बोर कर रहे हैं, उन्होंने अपने चेनल की  पूरी स्क्रीन की रजिस्ट्री राम औतार के नाम  करा दी है
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
- प्रदीप नील


बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

  आदरणीय अन्ना अंकल,
मैं “व्यापारी और बंदर“ कहानी पढ रहा था तो मुझे लगा कि ऐसी कहानी  तो मैं भी लिख सकता हूं. लेकिन अंकल जी, यह कहानी इतनी मुश्किल  निकली कि मैं उलझ गया और आपकी मदद चाहिए.
मेरी कहानी में भी वही व्यापारी टोपियां लिए जा रहा था,रास्ते में पेड के नीचे बैठा और सो गया था.नींद खुली तो पाया कि उसकी पोटली तो वहीं थी,लेकिन टोपियाँ              गायब.                                                                                                                                                        उसने “हे भगवान !“कहकर ऊपर देखा तो चौंका क्योंकि उसी पेड पर बहुत सारे बंदर बैठे थे.बंदर टोपियां ओढ कर इतरा रहे थे, आत्म-मुग्ध हो रहे थे और कोई कोई तो एक दूसरे की फोटो भी खींच रहे थे, अखबार में छपवाने के लिए.
व्यापारी समझाने लगा,“बेटा ये टोपियां इज़्ज़तदार लोगों के लिए ले जा रहा था,तुम नकलची बंदरों के ये किसी काम की नहीं हैं.“
बंदर खी खी करके हंसने और व्यापारी को चिढाने लगे. व्यापारी फिर समझाने लगा,“ भाईयो,पहले इन्हे ओढने के लायक बन कर आओ,फिर पहनना.ये सिर्फ ”इन्सानों के लिए हैं“
बंदर बुरा मान गए कि  विज्ञान तो हमें इन्सानों का पूर्वज बताता है और यह व्यापारी  हमें इन्सान ही नहीं मान रहा. अब तो इसे टोपियां बिल्कुल नहीं लौटायेंगे.“
अंकल जी, पुरानी कहानी में तो व्यापारी समझदार था और बंदर मूर्ख. उसने अपनी टोपी उतार कर फैंकी तो नकलची बंदरों ने भी अपनी अपनी टोपी उतार कर फैंक दी थी.लेकिन मैं अटक गया हूं क्योंकि मेरी कहानी का व्यापारी इतना समझदार  नहीं है जबकि बंदर बहुत ही धूर्त
हैं.वे इस फिराक में हैं कि कब व्यापारी अपनी टोपी उतार कर  फैंके और वे उसे भी उठा ले जाएं.
अंकल जी,व्यापारी की मदद करके कहानी पूरी करवा दें. व्यापारी को टोपियां वापिस न मिल पाए तो भी चलेगा लेकिन कहानी का अंत ऐसा हो कि टोपियों की गरिमा बनी रहे.कम से कम इतनी ज़रूर कि ये टोपियां इसके सिर से उसके सिर न हो जाएं.
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
प्रदीप नील

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

कौन सा भारत, अन्ना

 आदरणीय अन्ना अंकल,
           कल मैं बहुत रोया क्योंकि, फीस न दे पाने के कारण स्कूल से मेरा नाम कट गया.
और रात को मेरे पापा घर आए, शराब पीकर .लेकिन वे आज मम्मी की बजाए नेताओं को चोर तथा भ्रष्ट  बताते, गालियां देते आ रहे थे.
        मां गुस्से में तो थी ही, बोल दिया,“ तुम क्या कम हो? बच्चे की फीस की दारू पी गए.“
बस यह सुनने की देर थी कि पापा ने मां को बहुत मारा.मां ने “घरेलू-हिंसा कानून“ का नाम लिया तो पापा ने एक और जड दिया और बोले, “ यह इंग्लैण्ड नहीं है,राम दुलारी.यह भारत है,भारत .“
      मैंने रोकना चाहा तो पापा ने मुझे भी मारा. मैंने भी ”बाल-हिंसा कानून“  का नाम लिया तो पापा ने फिर मारा. मैंने चिल्लाकर कहा “ 100 नंबर पर फोन करके पुलिस बुलाता हूं “ तो पापा ने एक और जड दिया और बोले,“  यह इंग्लैण्ड नहीं है, राम लुभाया. यह भारत है, भारत .“
हमारा चिल्लाना सुनकर पडौसी भागकर आया तो पापा ने उसे भी मारा और बोले,“  यह इंग्लैण्ड नहीं है,राम औतार. वर्ना किसी के घर में यूं घुस आने पर जेल में होते.  शुक्र  मना कि यह भारत है, भारत.“
     अंकल जी, पापा ने तीन बार बोला ,“  यह भारत है, भारत. “ लेकिन वे किस भारत की बात कर रहे थे?  मैंने तो किताबों में पढा था कि भारत वह देश  है जहां नारी की पूजा होती है,बालकों पर दया, और पडौसियों से प्रेम.
   अंकल जी, कभी समय मिले तो मेरे पापा के कान खींचना और यह भी भी समझाना कि यह भारत ही है, इंग्लैण्ड नहीं .
   लेकिन जरा जल्दी करना क्योंकि मेरे पापा मारते बहुत हैं. मुझे मार से उतना डर नहीं लगता जितना किसी शराबी के मुंह से यह सुनकर लगता है,“  यह भारत है,भारत .“
                                        
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
प्रदीप नील

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

नेता का करेक्टर ढीला

आदरणीय अन्ना अंकल,
कल मेरी गली के नेता जी के यहाँ शाम  को जोर से स्पीकर पर यह गाना बजना शुरू  हो गया “मैं करूं तो साला कैरेक्टर ढीला है“
     अंकल, पहले तो मैंने सोचा कि उनकी बिटिया का जन्मदिन होगा और इस गाने की ताल पर पूरा परिवार नाच रहा,जषन मना रहा होगा लेकिन फिर ध्यान आया कि इस अवसर पर इस गाने का क्या काम?जाकर देख ही लेते हैं कि माज़रा क्या है?
     अंकल,जाकर देखा, वहां तो सन्नाटा पसरा हुआ था, अंधेरे कोने में बैठे नेता जी खुद ही यह गाना गा रहे थे,पूरे ज़ोर से गला फाडकर मुझे तो उन पर बहुत दया आई। मुझे देखते ही फूट फूट कर रोने लगे । फिर आंखें पोंछकर बोले “बेटा,यह इलेक्षन इस बार मेरी तरफ से तुम्हे ही लडना होगा और सिर्फ तुम्ही क्यों,पूरे ही देश  का भार अब तुम जैसे 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर है।
     मैंने कहा”सर,कानून 18 से नीचे वालों को इस काम की इजाज़त नहीं देता मुझे क्षमा करें“
    नेता जी तुनक कर बोले“ अपने अन्ना से बोलो न कि इस का बिल भी ले आएं“
मैंने पूछा ”सर, आपका मतलब क्या है,मैं समझा नहीं“
   नेता जी बोले“मेरा गाना सुनकर भी नहीं ?“ फिर अचानक तैश  में आ गए और बोले “इस पूरे देश  में शोर  मचा है कि देश  के सारे ही नेता चोर हैं। लेकिन है कोई 18 साल से उपर का ऐसा जो खुद किसी न किसी तरह के भ्रश्टाचार में न उलझा हो?“
मैंने कहा“सर,हाल तो 18 से कम वालों का भी बढिया नहीं है। हम भी मौका मिलते ही पापा की ज़ेब से पैसे उडा लेते हैं,इम्तिहानों में नकल करते हैं और बाईक पूरा दिन स्कूटियों के पीछे घुमाते रहते हैं“
नेता जी उलझन में दिखे,फिर बोले “तो अब क्या होगा?“
मैंने कहा “सर,एक रास्ता है मैं अन्ना अंकल को खत लिखता हूं। वे कम से कम इतना तो ज़रूर ही कर देंगे कि अपने इस हलके के लिए एक नेता जुटा दें । अपने देष में न मिले तो पाकिस्तान से तो मंगवा ही देंगे ”
यह सुनते ही नेता जी ज़ोर का ठहाका लगा दिया.
अंकल जी,मैं एक बात नहीं समझ पाया कि रो रहे नेता जी ने इतना ज़ोर का ठहाका क्यों लगया। मैंने तो चिट्ठी लिख दी,सो आप तक पंहुचे
                                      
                                  आपका अपना बच्चा
                                  मन का सच्चा
                                  अकल का कच्चा
                                  - प्रदीप नील 9996245222

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

अन्ना, किसने पिटवाया मुझे ?

 आदरणीय अन्ना अंकल,
   आपके इस बच्चे की  जान खतरे में है क्योंकि मेरी वज़ह से पहली बार मैदान में उतरा एक नया नेता चुनाव हार गया और अब वह मुझे मारना चाहता है. गलती सचमुच ही मेरी थी,जो आपके प्रभाव में आकर उसके लिए नीचे दिया गया चुनाव  घोषणा-पत्र बना बैठा.
(1) मैं किसी प्रकार के "साला-सालीवाद" में विश्वास  नहीं करता.
(2) बिजली,पानी तथा टैक्स-चोर मुझे यह सोचकर तो बिल्कुल वोट न दें कि मेरे जीतने के बाद उनके पौ-बारह हो जायेंगे.
(3) नकली या मिलावटी घी,दूध तथा शराब बनाने वाले मुझे वोट देकर शर्मिंदा न हों.चुनाव जीता तो उन्हे भी अंदर जाना ही होगा.
(4) सबसे बडी बात पर मतदाता गौर करें कि मुझे वोट देने से से पहले अपनी आत्मा में झांक कर देखें कि मुझे वोट क्यों देना चाहते हैं?
    अंकल जी, आप समझ ही गए होंगे कि बाकी और बातें जो मैंने लिखी,क्या रही होंगी?
लगभग वही बातें जो मजबूत लोकतंत्र के लिए ज़रूरी होती हैं. इसके बाद मैं यह सोचकर मज़े से सो गया कि देश  में आजकल अन्ना- आंधी चल ही रही है,मेरा पट्ठा जीतेगा और मुझे लाख दो लाख रूपए का इनाम तो पक्का ही देगा.
  लेकिन अंकल जी, उसके पक्ष में सिर्फ दो वोट आए और उन दो में से  एक भी पता नहीं कौन डाल गया.?नेता जी को चुनाव हारने का दुख नहीं है,दुख सिर्फ इस बात का है कि उनकी घरवाली ने भी उन्हे वोट नहीं दिया. अब नेता जी चार लोगों से यही कहते घूम रहे हैं "मैंने  साला-सालीवाद का नाम न लिया होता तो मैं चुनाव ज़रूर जीत जाता. घोषणा-पत्र का नंबर एक  पढकर मेरी घरवाली तक ने वोट नहीं दिया और बाकी लोगों ने यह सोचकर वोट नहीं दिए कि जो अपनी  घरवाली तक का वोट नहीं ले सकता उसे हम वोट क्यों दें?“,
   अंकल जी,यहां तक भी वह बेचारा मुझे माफ करने को तैयार है लेकिन मुश्किल  यह है कि उसका बसा बसाया परिवार उजडने वाला है क्योंकि उसकी घरवाली चार दिन से यही पूछ रही है,”राम औतार एक वोट तो मान लिया तूने डाला होगा,लेकिन बताता क्यों नहीं कि दूसरा वोट कौन चुडैल डाल गई.?“
   अंकल जी, अब आप सिर्फ इतना बता दें कि अगली बार किसी का  घोषणा-पत्र बनाने बैठूं तो कौन सी गलतियां न करूं.?
   वैसे कितना अच्छा रहे, अगर आप ही एक नमूना बनाकर भेज दें. आपका यह बच्चा और पिटने से बच जाएगा.
                                                                                              आपका अपना बच्चा
                                                                                              मन का सच्चा
                                                                                            अकल का कच्चा
                                                                                                   -प्रदीप नील

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

1000 रूपए का इनाम लोगे?


आदरणीय अन्ना अंकल ,
     कल अखबार में फोटो छपा हुआ था जिसमें एक लाल बंदर हैट लगाए, काले घोडे पर बैठा मजे से गाजर खा रहा था.इस फोटो का शीर्षक  बताने वाले को 1000 रू का इनाम देने की बात भी लिखी गई थी.
   अंकल जी, जिस देश  में मात्र 50 रू के लिए आदमी को छुरा घोंप दिया जाता हो,वहां 1000 के लिए कागज़ को छुरा घोंपने वालों की क्या कमी ! मैं भी बिस्तर में लेटा 1000 रू के बारे में सोच रहा था.लेखक जब पैसे के बारे में सोच रहा होता है तो लोग यही अंदाज़ा लगाते हैं कि देश  के हालात पर सोच रहा होगा.
भगत सिंह ने भी यही सोचा,जब उन्होने मेरे सपने में आकर पूछा,“उसी देश  के बारे में सोच रहे हो,जिसे हमने जान देकर आज़ाद करवाया था?“
  अंकल जी,मुझे तो बहुत शर्म  आई. मैंने कहा,“हां सर, देश  के साथ साथ 1000 रू के बारे में भी. अब देखिए न, इस फोटो का शीर्षक  लिख कर पैसे पाना चाहता हूं“
भगत सिंह ने फोटो देखा और हंस कर बोले,“इतना क्या सोच रहे हो?लिख दो भारतीय गधे पर बैठा अंगरेज़“
मैंने दबी ज़ुबान से उनकी भूल सुधारने की कोशिश  की,“ठीक से देखिए,सर.यह घोडा है..“
भगत सिंह ने डपट दिया,“चुप रह ,मूर्ख .हम घोडों ने तो इन बंदरों को सवारी तो बहुत दूर, अपने पुट्ठों तक को हाथ नहीं लगाने दिया.यह सूट बूट पहनकर घोडा दिख ही रहा है,वास्तव में तो यह गधा ही है.“
मैं चौंका,“गधा?“
  भगत सिंह ने कहा,“हां गधा. तुम तो जानते ही हो कि चालाक बंदर किसी न किसी पर तो हमेशा  सवार रहते ही हैं.परन्तु,इन बंदरों के हाथ घोडे नहीं लगे तो इन्होने गधों का मेक अप किया,उन्हे हिनहिनाना सिखाया और सवारी करने लगे.गधे खुश  कि वे घोडे हो गए,बंदर खुश  कि उन पर गधों की सवारी का लांछन नहीं लगा“
   मैंने पूछा,“सर आप इनको पहचान कैसे लेते हो?“
 भगत सिंह बोले,“छेड कर देख लेना,सीधे दुलत्ती झाडेगा,और साथ ही अपनी खुद की भाषा  पर भी उतर आएगा.“
  मैंने पूछा,“सर,बंदरों को ढोने में गधों को क्या मज़ा आता है?“
  भगत सिंह बोले,“यह इन गधों का प्राक्रतिक गुण है. किसी अपने स्तर के आदमी को ढोना पड जाए तो ये गधे बहुत ही विनम्र और दीन यानि गधे ही नज़र आते हैं.लेकिन वही गधा किसी थानेदार का सामान ढो ले तो खुद को थानेदार समझ अकडकर चलने लगता है.“
अंकल जी, सच कहूं तो फोटो की असलियत जानकर अब मेरी 1000 तो क्या एक रूपया पाने की तमन्ना भी नहीं रही.लेकिन भगत सिंह ने जो शीर्षक  बताया है,लिख कर भेजूंगा जरूर.मैं यह भी जानता हूं कि अखबार का संपादक मेरा यह शीर्षक पढ कर मुझे पागल समझेगा.कसूर उसका भी नहीं क्योंकि भगत सिंह संपादक के सपनों में आजकल नहीं आते. उनके सपनों में तो बिल्कुल नहीं जो स्वपन दिखने वाली सुंदरियों के आधे नंगे फोटो छापते रहते हैं और खुश  होते रहते हैं कि नारी को सम्मान दे रहे हैं.
  वैसे अंकल जी,क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि भगत सिंह कम से कम, अध्यापक,नेता और मीडिया वालों के सपनों में तो अवश्य  ही आएं
   आपका क्या ख्याल है?
   आपका अपना बच्चा
   मन का सच्चा      
   अकल का कच्चा
    प्रदीप नील